यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

गुरु श्री श्री 1008 श्रीमहंत महामंडलेश्वर, डॉ.स्वामी महेश योगी जी मेरी नज़रों में।


कला मानव मात्र के रचनात्मक शक्ति की सौन्दर्यमय अभिव्यक्ति है। कला का सौन्दर्य कलाकार का अपना सौन्दर्य होता है। कला वास्तव में जीवन की धड़कन है, अहसास है। कला को समर्पित कला के अहसास की गंध से युक्त चित्रकारों में परम आदरणीय गुरुदेव कला गुरु श्री श्री 1008 श्रीमहंत, महामंडलेश्वर ब्रह्मर्षि डॉ. स्वामी महेश योगी का नाम एकाएक उभर कर सामने आता है। 
आप पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर डीआई एम, अवध वि.वि. अयोध्या। पूर्व डायरेक्टर- योग विभाग, मेवाड़ वि. वि. राजस्थान रहे हैं । गुरु देव महज 14 वर्ष की उम्र में घर का त्यागकर सन्यास के पथ पर चलते हुए अब तक 1065 योग, आयुर्वेद, कला व आध्यात्मिक शिविर का आयोजन किया है। गुरु देव ने अनेको विश्व कीर्तिमान बनाया है जिनमें महर्षि पतंजलि जी की जन्मभूमि कोंडर में अनवरत (15100000) कपालभाति प्राणायाम करने का विश्व रिकॉर्ड। अंबेडकर नगर डी. आई. एम. कॉलेज में अनवरत 76 घंटे योग मैराथन का विश्व रिकॉर्ड। गाजियाबाद मेवाड़ इंस्टीट्यूट में 51 घंटे अनवरत कपालभाति करने का विश्व रिकॉर्ड। गुजरात के अहमदाबाद में अनवरत 51 घंटे योग मैराथन कर कनाडा का रिकॉर्ड तोड़ने का विश्व रिकॉर्ड चित्तौड़गढ़ मेवाड़ विश्वविद्यालय में एक मिनट में 21 बार सूर्य नमस्कार करने का विश्व रिकॉर्ड। अयोध्या सरयू नदी में 7 घंटे में तेरह (13100) बार लगातार डुबकियां लगाने का विश्व रिकॉर्ड। लखनऊ में शीर्षासन में सवा घंटे कपाल भांति करने का विश्व रिकॉर्ड। अयोध्या श्री हनुमानगढ़ी में छः माह तक भोजन का त्यागकर 11 घण्टे प्रतिदिन यानी 2021 घंटे में (21826800) 2 करोड़ 18 लाख 26 हजार 8 सौ स्ट्रोक कपालभाति करने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया है, साथ ही साथ चित्रकला के क्षेत्र में अब तक 11000 से अधिक चित्रों का सृजन करने का विश्व कीर्तिमान। भारत के महापुरुषों पर आधारित दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्ति चित्र श्रृंखला बनाने का विश्व रिकॉर्ड। चूना एवं गेरु़ से संपूर्ण रामायण व संपूर्ण महाभारत का चित्रांकन तथा दुनिया की सबसे बड़ी कैरी केचर पेंटिंग श्रृंखला बनाने का रिकॉर्ड। दुनिया की के बड़ी मोनोक्रोम पेंटिंग श्रृंखला बनाने का भी रिकॉर्ड है।


गुरुदेव की साहित्यिक यात्रा में भी अनेकों कीर्तिमान है जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी बायोग्राफी (दिव्य भारत गौरव ग्रंथ) लिखने का रिकॉर्ड। भारत के प्रणेता 321 ऋषियों के जीवन पर आधारित (भारत ऋषि जान एनसाइक्लोपीडिया) का लेखन कार्य। योग, कला व साहित्य में अब तक 32 पुस्तकों का लेखन कार्य। (विभिन्न युगों में श्री राम) विषय पर पर शोध कार्य प्रमुख है।
आपके आध्यात्मिक कार्यों में भारत के चारों दिशाओं में चार दिव्य योग धाम की स्थापना हेतु संपूर्ण भारतवर्ष में दिव्य भारत निर्माण यात्रा का संचालन। भारत के विविध राज्यों में श्री हनुमान भक्ति आंदोलन का संचालन एवं रूद्र राज योग शिविर का संचालन । मेरठ में अनवरत निराजल 101 घंटे तक अनवरत 2551 बार श्री हनुमान चालीसा पाठ करने का विश्व रिकॉर्ड है।
लोक सेवा कार्यो में गुरुदेव निरंतर अपने संस्थान के दिव्यांग व अन्य गरीब परिवार के बच्चों को लेकर योग, कला, साहित्य व अन्य क्षेत्रों में में अब तक 120 विश्व रिकॉर्ड बनाकर भारत का गौरव बढ़ाया।
आपने दिव्यांग व मूक बधिर विद्यार्थियों द्वारा 21000 कलाकृतियों का सृजन कर सबसे बड़ी चित्र श्रृंखला का विश्व रिकॉर्ड तथा योग में अनेकों विश्व रिकार्ड बनाया।
संसार में ऐसे विरले लोग ही मिलते हैं जिनकी प्रतिभा इतनी बहुमुखी रही हो। अध्यात्म, धर्म, मूर्ति एवं चित्रकला,भारतीय साहित्य, खोज-दर्शन, योग-विधा, मंचन व नाटक आदि विविध क्षेत्रों में आपकी विशेष उपलब्धि रही है।
***************************************
    "सर्वप्रथम जब हमने गुरुदेव को देखा तो मन में सोचा कि इतना साधारण व्यक्तित्व एक महान कलाकार है। कुछ यकीन नहीं हो रहा था। इनका सरल स्वभाव, स्नेहपूर्ण व्यवहार और साधारण परिधान को देखकर मेरा मन अपार श्रद्धा से भर गया, जितना भी हम गुरुदेव की महत्ता के बारे में सोचते हैं तो उतना ही हमारा मन अपार श्रद्धा से नत हो जाता है।
परम् श्रद्धेय श्री महेश योगी जी हमारे गुरू बंधु, सब प्रकार के दुख-सुख में इनके पास हमारा सहज भाव से आदान-प्रदान चलता रहता है। इनका आकर्षक व्यक्तित्व,अगाध ज्ञान, अद्वितीय प्रतिभा, विनम्रता, सादगी और मधुर विनोद का सुन्दर हमेशा हम शिष्यों को प्रभावित करता रहता है। इनकी खास विशेषता तो यह है कि ये हम विद्यार्थियों के बीच स्वयं एक विद्यार्थी के रूप में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। गुरु जी के द्वारा कही गई एक बात अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। जिसका संकलन मेरे लिए एक ग्रंथ के बराबर है। इनके भाव पूर्णतया ओज़पूर्ण और विचार निःसंदेह निरन्तर कला बोध को नई क्रांति प्रदान करती है।
गुरु जी की शिष्य परंपरा एक वटवृक्ष के समान है। जिनमें अनेकों प्रतिभाएं विस्तार पा रही हैं। किंतु मैं अपने। आप को सौभाग्यशाली समझता हूं कि हमें गुरुदेव के जीवन के सबसे निकटतम रहकर एक विद्यार्थी के रूप में कला के गुर सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
वह ईश्वर की असीम अनुकम्पा से उत्पन्न एक अदभुत संयोग था जब 17 दिसम्बर दिन सोमवार सन् 2007 में गुरु जी से मेरी पहली बार मुलाकात हुई थी। तब मैं स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र था। कुछ सहपाठियों के साथ मैं अपने शिक्षण कक्ष में बैठा था। तभी वहां बहुत सी साधारण परिधान में, हाथों में स्केच बुक एवं पेंटिंग लिए शिक्षण कक्ष में आपका प्रवेश हुआ, चेहरे पर चिंतन के भाव, कुशल पूर्ण व्यवहार, कलात्मकता से परिपूर्ण, ऐसा लगा जैसे कला साहित्य का एक नया संसार हमारे समक्ष आ गया हो। तत्पश्चात इन्होंने हम सभी का मधुर संवादों द्वारा परिचय लिया, और कला से संबंधित कई प्रश्न भी पूछे, जिसका इन्होंने कुशल मार्गदर्शक की भाँति उत्तर भी बताया था। इस समय मैं एक तरुण कलाकार था, इतना गूंढ अर्थ समझने में अबोध था। बचपन से ही कला में विशेष रुचि होने के कारण मेरी नजर इनके पेन्टिंग को देखने हेतु बार-बार लालायित हो रही थी।
अतः मैंने कलाकृति देखने के लिए अनुरोध किया। मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए कलाकृति को दिखाया जो तत्कालीन राष्ट्रपति डा. कलाम जी की थी जिसे देख मैं आश्चर्यचकित हो गया और वह मेरी आत्मा को छू गयी, मैं कुछ क्षणों तक उसे एक टक निहारता रहा तथा मन ही मन आपको गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया।
जब मैं कालेज से लौटकर शाम को अपने घर पर आया तो पूरी रात उस पेंन्टिग के बारे में सोचता रहा। मेरे जिज्ञासाएं गुरुजी से मिलने के लिये प्रेरित करती रहीं, कुछ समय पश्चात एक मित्र द्वारा आपका मो.नम्बर मिला, 20 अप्रैल 2008 को मैंने पुनः मिलने की इच्छा व्यक्त की। अनुमति मिलने के पश्चात मैं गुरु जी के कला संस्थान में प्रवेश किया और किसी अज्ञात प्रेरणा ने मेरे हाथों को इनके चरणों की तरफ बढ़ा दिये आर्शीवाद देते हुए आंखों से ही बैठने के लिए संकेत किया।
मैंने कला संस्थान में उपस्थित शिष्यों को देख बहुत चकित हुआ गुरु जी की आयु से दुगने आयु के लोग भी इनके शिष्यों की जमात में हैं और बड़ी तन्मयता के साथ कला सीख रहे थे सभी को गुरु जी बड़ी कुशलता के साथ चित्रण कार्य सिखा रहे हैं तब मुझे अहसास हुआ कि शिष्यों के प्रति गुरुदेव के मन में असीम प्यार समाया हुआ है।
गुरू जी के इस प्रभावपूर्ण व्यवहार से मेरे अंतर्मन की कला जिज्ञासा और बढ़ने लगी तथा कला की नयी कोपलें फूटने लगीं। यह सब मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे सुबह-सुबह पावन सरिता सरयू के किनारे उगते हुए सूर्य के जरिये मुझे मुक्ति का रास्ता दिख गया हो।"
कला संसार के इस महासागर में मेरा प्रवेश करना बहुत दुष्कर था लेकिन घनघोर अंधेरों में एक प्रकाश पुंज की भाति रोशनी प्रदान कर गुरुदेव ने हमें अपना रास्ता दिखाया।


तत्पश्चात मै एक शिष्य के रूप में इनके श्री चरणों में बैठकर कला के विविध सोपानों का अध्ययन कर, कलात्मकता के क्षेत्र में प्रवेश किया और अपनी तूलिकाओं से विशाल चित्र श्रृंखलाओं का सृजन कर रहा हूं जो आज समाज में परिलक्षित होती हुई देश के विभिन्न संस्थाओं, आर्ट गैलरियों तथा अनेकों प्रदेशों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखते हुए सम्मानित होती रही हैं जिसे मैं अपने जीवन में गुरू जी द्वारा प्रदान किये गये एक कला रूपी प्रसाद के रूप में आत्मसात करता हूँ।


महान विचारों और विशाल सुंदर मन के धनी गुरुदेव के सान्निध्य में 10 वर्षों से अधिक समयों से इनके तपोवन में रहकर मैने कला का गुर सीखा तथा आज भी इन्हीं की शरणस्थली में रहकर मैं आधुनिक कला की नवीन बारीकियों को सीख रहा हूँ। गुरुदेव के कलात्मक गुणों से तो मै प्रभावित ही हूँ, परंतु इनकी सदैव आदर्शवादी सोच, मर्यादित विचारधाराएं एवं नैतिक परख बातों से निरंतर बहुत कुछ सीखने को मिलता रहता है। इतना ही नहीं आपके द्वारा समय-समय पर सुनाई गई ऐतिहासिक एवं पौराणिक कहानियां तथा कलात्मक वार्तालापों से मै अत्यधिक प्रभावित रहा हूँ। कहने का आशय यह है कि गुरुदेव हमारे जीवन के पथ प्रदर्शक के रूप में तथा इनके सान्निध्य में रहना हमें स्वर्ग में रहने से भी बढ़कर है।
इतना विशालतम महारत हासिल करने के बाद भी गुरुदेव में तनिक भी अभिमान नहीं है तथा अपने सरल स्वभाव को परिलक्षित करके अपनी योग साधना को अपने मन की गहराईयों में समाहित कर नये धाराओं का उद्‌गार करते रहते हैं। इनकी विशालता के बारे में मैं क्या कहूं जिसके लिए मेरे शब्द छोटे पड़ जाते हैं। मुझे गर्व है कि मैं इनका शिष्य हूं।
योग,कला,साहित्य,अध्यात्म आदि में गहरी रुचि होने के कारण श्रद्धेय गुरू जी ने अपने निजी पारिवारिक सुखों का त्याग कर एक तपस्वी सन्यासी का जीवन श्री हनुमान जी के चरणों में (श्री हनुमानगढ़ी, श्री अयोध्या धाम ) व्यतीत कर रहे हैं और निरन्तर अपने शिष्यों में सतमार्गो पर चलने की अलख जगाने में पूरी निष्ठा भाव से प्रयत्नशील रहे हैं।

"गुरुदेव का अपनत्व ही मेरे जीवन का संबल है।
आपका स्नेह आशीर्वाद यूं ही सदैव बना रहे,
इसी आशा और विश्वास के साथ हृदय से कोटि-कोटि प्रणाम ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें