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बुधवार, 2 नवंबर 2022

रानी तलाश कुंवरि / Rani Talash Kuwari


🚩 महारानी तलाश कुंवरि 🛡🗡 🏹

अमोढ़ा के नरेश पृथा सिंह के बाद उनके बड़े पुत्र राजा अभय सिंह तथा उनके बाद उनके पुत्र राजा जंगबहादुर सिंह ने अमोढ़ा का शासन सम्भाला उनका विवाह अंगोरी राज्य (राजाबाजार, ढ़कवा)के दुर्गवंशी राजकुल की राजकुमारी तलाशकुँवरी के साथ हुआ था।उन्हें भी राजकुमारों की तरह शस्त्र चलाने की शिक्षा दी गई थी।भाला,तलवारबाजी घुड़सवारी तीरंदाज़ी आदि शस्त्र कला में रानी बचपन से ही प्रवीण थीं।

सब कुछ ठीक चल रहा था तभी सन 1853 में राजा जंगबहादुर सिंह का निःसंतान निधन हो गया, तब परिस्थिति वश रानी तलाशकुवंरि ने अमोढ़ा की राजगद्दी संभाली। सत्ता सम्भाले हुए ४ वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे, तभी १८५७ का स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हो गया। रानी तलाशकुँवरि भी झांसी की रानी की तरह निसंतान थीं, तथा गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की कुख्यात ‘डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ पॉलिसी यानी की(निःसंतान राजपरिवारों का राज्य ईस्ट इंडिया कम्पनी में मिला लेना) के सीधे निशाने पर थीं। 
1857 में अवध के बाकी हिस्सों में बगावत के शोले भड़ककर बुझ गए तो भी रानी तलाशकुंवरी ने अंग्रेजों की अधीनता या पराजय स्वीकार करना गवारा नहीं किया।अंग्रेजों ने उनके शासन के दौरान कई तरह की दिक्कतें खड़ी करने की कोशिश की,पर स्वाभिमानी रानी ने हर मोरचे का मुकाबला किया। 

                   
                   (रानी तलाश कुंवरि )

रानी ने अपने प्रमुख रणनीतिकारों के साथ बैठके की और फैसला किया कि अंग्रेजों को भारत से खदेडऩे में स्थानीय क्षत्रियों,किसानों तथा पठानो इत्यादि लड़ाकों की मदद से एक बड़ी सेना का संगठन किया जाय।और अंग्रेजो का जी जान से मुक़ाबला किया जाय।

इस प्रकार क्षेत्रीय जनों की एक बड़ी सेना बनाकर रानी ने उन्हें युद्ध नीति का प्रशिक्षण स्वयं दिया,और युद्ध का बिगुल फूंक दिया गया। रानी की सेना ने बस्ती-फैजाबाद के सड़क और जल परिवहन को ठप्प करा दिया था। संचार के सारे तार टूट जाने से अंग्रेज बुरी तरह बौखला गए। रानी अंग्रेजों के आंखों की किरकिरी पहले से ही बन गयीं थी।उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की तरह मर्दाना वेश में लड़कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए और सैन्य व्यूह रचना में अपनी सिद्धहस्तता भी प्रमाणित किया। विपरीत परिस्थिति और सीमित संसाधन के बावजूद उन्होंने अपने साहस,शौर्य और रणकौशल की बदौलत  अंग्रेजों से १० महीने तक युद्ध किया।और उनकी सेना ने कई अंग्रेज अधिकारियों और सैनिकों को मौत के घाट उतारा।

पखेरवा के पास हुए मुकाबले में उनका प्यारा घोड़ा घायल होकर मर गया।पराजय सामने खड़ी देखकर भी उनका मनोबल कम नहीं हुआ। किंचित भी घबराए बिना उन्होंने अपने सैनिकों से कहा,’अंग्रेज मुझे हर हाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहते हैं। मैंने भी तय कर लिया है, कि अगर इसकी नौबत आई,तो मैं अपनी ही कटार से अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगी। आप लोग मेरे मरने के बाद भी जंग जारी रखना तथा मेरी लाश फिरंगियों के हाथ न पड़ने देना।

2 मार्च, 1858 को बुरी तरह घिर जाने पर रानी ने जो कहा था, कर दिखाया। अपनी ही कटार खुद को मार ली। उनके वफादार सैनिकों ने जान पर खेलकर उनकी लाश अंग्रेजों के हाथ न पड़ने देने का वादा निभाया। रानी की मौत बाद उनके शव को सहयोगियों ने छिपा लिया। बाद में शव को अमोढा राज्य की कुल देवी समय माता भवानी का चौरा के पास दफना दिए। और वहां पर मिट्टी का एक टीला बना दिया। यह जगह रानी चौरा के नाम से ही मशहूर है। पखेरवा में जहां रानी का घोड़ा मर गया था,उसे भी स्थानीय ग्रामीणों ने वहीं दफना दिया। इस जगह पर एक पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है। यहाँ के लोगों के लिए यह जगह श्रद्धा का केन्द्र है।
 
    (महारानी तलाश कुंवरि जी के किले के ध्वंसावशेष)  


मगर पूर्वाग्रही और खिसियाए अंग्रेजों ने तोप लगाकर अमोढ़ा क़िले को,सुंदर राजभवन से खंडहर में तब्दील कर दिया उनका महल और किले के खंडहर आज भी उनके साहस,शौर्य,वीरता और शहादत की कहानी बयां करते हैं।

अंग्रेजो ने इस इलाके में भयानक नरसंहार किया अमोढ़ा का विध्वंस करने के पश्चात रानी अमोढ़ा,राजा नगर और राजा सत्तासी (गोरखपुर) की सारी संपत्ति बस्ती और बांसी राजा को अंग्रेजों के प्रति उनके वफ़ादारी के इनाम स्वरूप दे दी।
साभार 
सोसल मीडिया 

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